इस किताब में राहत साहब का ताज़ा कलाम मौजूद है। राहत साहब की ज़िन्दगी का ये आख़िरी शेरी मज्मूआ है। इसके बाद अब उनकी ल्लियातही मंज़रे-आम पर आयेगी। राहत साहब के चाहने वालों के लिए ये एक ऐसा बदनसीब कलाम है, जिसे उनकी मर्दाना आवाज़ का लुत्फ़ ना मिल सका।
About the Author
राहत इंदौरी का जन्म 1 जनवरी, 1950 को इंदौर में रिफ़तुल्लाह और मक़बूल बी के घर में हुआ। उन्होंने उर्दू में एम.ए. और पी-एच.डी. करने के बाद इंदौर विश्वविद्यालय में सोलह वर्षों तक उर्दू साहित्य अध्यापन और त्रैमासिक पत्रिका ‘शाख़ें’ का 10 वर्षों तक सम्पादन किया। पचास से अधिक लोकप्रिय हिन्दी फ़िल्मों एवं म्यूजिक अल्बमों के लिए गीत-लेखन कर चुके हैं तथा सभी प्रमुख ग़ज़ल गायकों ने उनकी ग़ज़लों को अपनी आवाज़ दी है। अब तक उनकी शायरी की सात से ज़्यादा पुस्तकें प्रकाशित और समादृत हो चुकी हैं। पिछले 40-50 वर्षों में लगातार देश-विदेश के मुशायरों और कवि सम्मेलनों में शिरकत। अमेरिका, कनाडा, इंग्लैंड, सिंगापुर, मॉरीशस, सऊदी अरब, कुवैत, बहरीन, ओमान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल आदि कई देशों की यात्राएँ कर चुके हैं और देश-दुनिया के दर्जनों पुरस्कारों से सम्मानित हुए हैं।
Reviews
There are no reviews yet.