मनुष्य का जीवन रोज-रोज ज्यादा से ज्यादा अशांत होता चला जाता है और इस अशांति को दूर करने के जितने उपाय किए जाते हैं उनसे अशांति घटती हुई मालूम नहीं पड़ती और बढ़ती हुई मालूम पड़ती है। और जिन्हें हम मनुष्य के जीवन में शांति लाने वाले वैद्य समझते हैं, वे बीमारियों से भी ज्यादा खतरनाक सिद्ध होते चले जाते हैं। ऐसा बहुत बार होता है कि रोग से भी ज्यादा औषधि खतरनाक सिद्ध होती है। अगर कोई निदान न हो, अगर कोई ठीक डाइग्नोसिस न हो, अगर ठीक से न पहचाना गया हो कि बीमारी क्या है, तो इलाज बीमारी से भी ज्यादा खतरनाक सिद्ध हो तो आश्र्चर्य नहीं है। मनुष्य के जीवन में अशांति का मूल कारण क्या है? दुख, पीड़ा क्या है? मनुष्य के तनाव और टेंशन के पीछे कौन सी वजह है, उसका ठीक-ठीक पता न हो, तो हम जो भी करते हैं वह और भी कठिनाइयों में डालता चला जाता है। ओशो धार्मिकता का अर्थ मेरी दृष्टि में सजगता के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है। न मंदिरों की पूजा और न प्रार्थना। न शास्त्रों का पठन और पाठन। सोया हुआ आदमी यह सब करता रहेगा, तो यह सब और सो जाने की तरकीबों से ज्यादा नहीं है। लेकिन जागा हुआ आदमी पाता है–नहीं किसी मंदिर में जाता है पूजा करने फिर, बल्कि पाता है कि जहां वह है, वहीं मंदिर है। नहीं फिर किसी मूूर्ति में भगवान उसे देखने की और खोजने की जरूरत पड़ती है, बल्कि पाता है कि जो भी है और जो भी दिखाई पड़ता है, वही भगवान है। धार्मिकता का अर्थ मेरी दृष्टि में सजगता के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है। न मंदिरों की पूजा और न प्रार्थना। न शास्त्रों का पठन और पाठन। सोया हुआ आदमी यह सब करता रहेगा, तो यह सब और सो जाने की तरकीबों से ज्यादा नहीं है। धार्मिक आदमी वह नहीं है, जो मंदिर जाता हो।
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