थोड़े से साहस की जरूरत है और आनंद के खजाने बहुत दूर नहीं हैं। थोड़े से साहस की जरूरत है और नर्क को आप ऐसे ही उतार कर रख सकते हैं, जैसे कि कोई आदमी धूल-धवांस से भर गया हो रास्ते की, राह की, और आ कर स्नान कर ले और धूल बह जाए। बस ऐसे ही ध्यान स्नान है। दुख धूल है। और जब धूल झड़ जाती है और स्नान की ताजगी आती है, तो भीतर से जो सुख, जो आनंद की झलक मिलने लगती है, वह आपका स्वभाव है। ओशो पुस्तक के मुख्य विषय-बिंदु: कैसे दुख मिटे? कैसे आनंद उपलब्ध हो? महत्वाकांक्षा अभिशाप है। जीवन में आत्म-स्मरण की जरूरत कब पैदा होती है? यदि परमात्त्मा सभी का स्वभाव है तो संसार की जरूरत क्या है
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