यह संभव है कि संसार में जो बड़ी-बड़ी ताकतें काम कर रही हैं, उन्हें हम पूरी तरह न समझ सकें, लेकिन इतना तो हमें समझना ही चाहिए कि भारत क्या है और कैसे इस राष्ट्र ने अपने सामाजिक व्यक्तित्व के विभिन्न पहलू कौन से हैं और उसकी सुदृढ़ एकता कहाँ छिपी हुई है | भारत में बसने वाली कोई भी जाति यह दावा नहीं कर सकती कि भारत के समस्त मन और विचारों पर उसी का एकाधिकार है | भारत आज जो कुछ है, उसकी रचना में भारतीय जनता के प्रत्येक भाग का योगदान है | यदि हम इस बुनियादी बात को नहीं समझ पाते तो फिर हम भारत को भी समझने में असमर्थ रहेंगे | और यदि भारत को हम नहीं समझ सके तो हमारे भाव, विचार और काम सब-के-सब अधूरे रह जायंगे और हम देश की ऐसी कोई सेवा नहीं कर सकेंगे, जो ठोस और प्रभावपूर्ण हो | मेरा विचार है कि ‘दिनकर’ की पुस्तक इस बातों को समझने में, एक हद तक, सहायक होगी | इसलिए, मैं इसकी सराहना करता हूँ और आशा करता हूँ कि इसे पढ़कर अनेक लोग लाभाविंत होंगे |
About the Author
जन्म: 23 सितम्बर, 1908, एक निम्न-मध्यवर्गीय कृषक-परिवार में (सिमरिया, तत्कालीन मुंगेर जिला, बिहार)। शिक्षा: 1923 में मिडिल की परीक्षा पास की और 1928 में मोकामा घाट के रेलवे हाई स्कूल से मैट्रिकुलेशन। 1932 में पटना कॉलेज से ग्रेजुएशन, इतिहास में ऑनर्स के साथ। आजीविका: 1933 में बरबीघा (मुंगेर) में नवस्थापित हाई स्कूल में प्रधानाध्यापक। 1934 से 1942 तक बिहार सरकार के अधीन सब-रजिस्ट्रार। 1943 से 1947 तक प्रान्तीय सरकार के युद्ध-प्रचार-विभाग में। 1947 में बिहार सरकार के जन-सम्पर्क विभाग में उपनिदेशक। 1950 से 1952 (मार्च) तक लंगट सिंह कॉलेज, मुजफ्फरपुर (बिहार) में हिन्दी विभागाध्यक्ष और प्रोफेसर। 1952 से 1964 तक सरकारी नौकरी से त्यागपत्र देकर राज्यसभा के कांग्रेस द्वारा निर्वाचित सदस्य। 1964 में राज्यसभा की सदस्यता छोड़कर भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति। मई, 1965 से 1971 तक भारत सरकार के गृह-मंत्रालय में हिन्दी सलाहकार। साहित्यिक जीवन का आरम्भ: 1924 में पाक्षिक ‘छात्र सहोदर’ (जबलपुर) में प्रकाशित पहली कविता से। प्रमुख कृतियाँ: कविता: रेणुका, हुंकार, रसवन्ती, कुरुक्षेत्र, सामधेनी, बापू, धूप और धुआँ, रश्मिरथी, नील कुसुम, उर्वशी, परशुराम की प्रतीक्षा, कोयला और कवित्व तथा हारे को हरिनाम। गद्य: मिट्टी की ओर, अर्धनारीश्वर, संस्कृति के चार अध्याय, काव्य की भूमिका, पन्त, प्रसाद और मैथिलीशरण, शुद्ध कविता की खोज तथा संस्मरण और श्रद्धांजलियाँ। सम्मान: 1959 में ‘संस्कृति के चार अध्याय’ पर साहित्य अकादेमी पुरस्कार और पद्मभूषण की उपाधि। 1962 में भागलपुर विश्वविद्यालय की तरफ से ‘डॉक्टर ऑफ लिटरेचर’ की मानद उपाधि। 1973 में ‘उर्वशी’ पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार। अनेक बार भारतीय और विदेशी सरकारों के निमन्त्रण पर विदेश-यात्रा। निधन: 24 अप्रैल, 1974।
Reviews
There are no reviews yet.