पंचानवे वर्ष की उम्र में खुशवंत सिंह की यह उपन्यास लिखने की कोई मंशा नहीं थी। लेकिन उनके अंदर का लेखक कुछ लिखने को कुलबुला रहा था, और जब उनकी एक मित्र ने उन्हें अपने दिवंगत दोस्तों की यादों को शब्दों में गूंथने की सलाह दी तो उन्हें यह बात जम गई, और पुरानी यादों में कल्पनाओं के रंग भरकर बना ‘सनसेट क्लब’। तीन उम्रदराज दोस्त हर शाम दिल्ली के लोदी गार्डन सैर के लिए आते हैं। बाग में लगी एक बेंच उनका अड्डा है जहाँ वे रोज कुछ देर गपशप करके अपनी जीवन-संध्या में रंग भरने की कोशिश करते हैं।
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इस पुस्तक में खुशवंत सिंह की सभी कहानियाँ सम्मिलित हैं। उनकी कहानियाँ समाज के यथार्थ की सच्ची और जीती-जागती तस्वीर प्रस्तुत करती हैं चाहे वह कितनी ही कटु या अप्रिय क्यों न लगे। उन्हें किसी भी प्रकार के आडम्बर से नफ़रत थी और वे अपनी साफ़गोई के लिए जाने जाते थे। स्त्री-पुरुष यौन-संबंधों पर भी वह उतनी ही बेबाकी से बिना किसी लाग-लपेट के लिखते थे, जिसके कारण कई बार उनके लेखन को अश्लील माना जाता था। खुशवंत सिंह की कहानियाँ कहीं व्यंग्यपूर्ण हैं, तो कहीं समाज के ठेकेदारों का पर्दाफाश करते हुए उनके सत्य को उजागर करती हैं और कहीं अपनी मार्मिकता से दिल को छू लेती हैं। खुशवंत सिंह एक प्रख्यात लेखक, पत्राकार, स्तंभकार थे। पद्मभूषण और पद्मविभूषण से सम्मानित, उनका अपना अनोखा लिखने का अन्दाज़ पाठकों में बहुत लोकप्रिय है। औरतें, समुद्र की लहरों में, बोलेगी न बुलबुल अब, मेरा भारत, मेरी दुनिया मेरे दोस्त और टाइगर टाइगर उनकी अन्य लोकप्रिय कृतियाँ हैं।
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